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आयुर्वेद

ये मानव जीवन अनमोल है हम अनेक इच्‍छा और अनुभव को साथ लेकर अपने लक्ष्‍य की ओर आगे बढ़ते है किन्‍तु जीवन जीना ही मात्र ही मनुष्‍य का उद्देश्‍य नहीं

होता है, बल्कि सुखपूर्वक निरोगी जीवन बितना आवश्‍यक है।  प्राकृति‍ मां  के गोद से आयुर्वेद के कुछ टिप्‍स अपनाकर आप सुखपूर्वक निरोगी जीवन व्‍यतीत कर सकते है।  

भारत जैसे अनेक देशों ने आयुर्वेद को अपनाया है जो कि हमारे शरीर के बहुत ही सरल और सहज होता है जा‍े कि आदिम काल से चला आ रहा है।  आयुर्वेद एक ऐसा अनमोल धरोहर है  जिसका पालन कर के हम स्‍वस्‍थ एवं निरोगी जीवन बिताते है। 

आयुर्वेद का प्रलेखन वेदों में वर्णित है अगर हम आयुर्वेद का संधि विच्‍छेद करें तो ज्ञात होता है कि 

आयुर्वेद (आयुः+वेद) इन दो शब्दों के मिलने से आयुर्वेद शब्द बना है जिसक अर्थ है ”जीवन विज्ञान”। जिसका विकास विभिन्न वैदिक मंत्रों से हुआ है, आयुर्वेद के ज्ञान को चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में व्यापक रूप से प्रलेखित किया गया था।  आयुर्वेद के अनुसार जीवन के उद्देश्‍यों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए स्वास्थ्य पूर्वापेक्षित है। आयुर्वेद मानव के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं का पूर्ण समाकलन करता है, जो एक दूसरे को प्रभावित करते है। 

आज समस्त विश्‍व का ध्यान आयुर्वेदीय चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हो रहा है, जिसके तहत उन्होनें भारत की अनेक जड़ीबूटियों का उपयोग अपनी चिकित्सा में करना शुरू कर दिया है। आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति की यह विशेषता है कि इनमें रोगों का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट किया जाए एवं पुन: उत्‍पति न हो। 

आयुर्वेद में रोगों की पहचान एवं परीक्षण विभिन्न प्रश्‍नों और आठ परीक्षणों, जैसे नाड़ी, मूत्र, मल, जिहवा, शब्द(आवाज) स्‍पर्श, नेत्र, आकृति द्वारा की जाती है। आयुर्वेद मानव को लघु ब्रह्माण्‍ड (यथा पिण्ड तथा  ब्रह्माण्‍ड) या कहे एक ऊर्जा  के रूप में मानता है।

आयुर्वेद की विशेषताएं:-

संहिताकाल (1000 ई0 पूर्व0) के दौरान आयुर्वेद का आठ विशेष शाखाओं में विकास हुआ, जिसके कारण इसे अष्टांग आयुर्वेद कहा जाता है,वे है:-

  • कायचिकित्सा (इंटर्नल मेडिसिन)
  • कौमारभृत्य (पैडिएट्रिक्स)
  • ग्रह चिकित्सा (साइक्येट्री)
  • शालाक्य (ई.एन.टी)
  • शल्य तंत्र (सर्जरी)
  • विष तंत्र (टाक्सिकॉलोजी)
  • रसायन (जिरेएट्रिक्स)
  • वाजीकरण (साइंस ऑफ विटिलिटि)

 आयुर्वेद में शि‍क्षण एवं प्रशि‍क्षण के विकास के पिछले 50 वर्षो में अब इसे विशि‍ष्ट शाखाओं में विकसित किया गया है।वे हैः- 

  • आयुर्वेद सिद्धांत (फंडामेंटल प्रिंसीपल्स आफ आयुर्वेद)
  • आयुर्वेद संहिता
  • रचना शारीर (एनाटमी)
  • क्रिया शारीर (फिजियोलॉजी)
  • द्रव्यगुण विज्ञान (मैटिरिया मेडिका एंड फार्माकॉलाजी)
  • रस शास्त्र
  • भैषज्य कल्पना (फार्माकॉलाजी)
  • कौमार भृत्य (पेडियाट्रिक्स)
  • प्रसूति तंत्र (ऑबस्ट्रेटिक्स एंड गाइनेकोलॉजी)
  • स्वस्थ वृत (प्रीवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन)
  • कायचिकित्सा (इंटर्नल मेडिसिन)
  • रोग निदान (पैथोलॉजी)
  • शल्य तंत्र (सर्जरी)
  • शालाक्य तंत्र (ई.एन.टी.)
  • मनोरोग (साईकियाट्री)
  • पंचकर्म